प्राकृतिक चिकित्‍सा सेवा

प्राकृतिक चिकित्सा सेवा

 

  • प्राकृतिक चिकित्सा न केवल उपचार की पद्धति है, अपितु यह एक जीवन पद्धति है । इसे बहुधा औषधि विहीन उपचार पद्धति कहा जाता है। यह मुख्य रूप से प्रकृति के सामान्य नियमों के पालन पर आधारित है। जहॉ तक मौलिक सिद्धांतो का प्रश्‍न है इस पद्धति का आयुर्वेद से निकटतम सम्बन्ध है। 

  • प्राकृतिक चिकित्सा के समर्थक खान-पान एवं रहन सहन की आदतों, शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश तथा अनेक नई प्रकार की चिकित्सा विधाओं पर विशेष बल देते है।

 

मिट्टी चिकित्साः-

 

मिट्टी जिसमें पृथ्वी तत्व की प्रधानता है जो कि शरीर के विकारों विजातीय पदार्थो को निकाल बाहर करती है। यह कीटाणु नाशक है जिसे हम एक महानतम औषधि कह सकते है।

 

मिट्टी की पट्टी का प्रयोगः-

 

उदर विकार, विबंध, मधुमेह, शि‍र दर्द, उच्च रक्त चाप ज्वर, चर्मविकार आदि रोगों में किया जाता है। पीडित अंगों के अनुसार अलग अलग मिट्टी की पट्टी बनायी जाती है।

 

वस्ति (एनिमा):-

 

उपचार के पूर्व इसका प्रयोग किया जाता जिससे कोष्ट शुद्धि हो। रोगानुसार शुद्ध जल नीबू जल, तक्त, निम्ब क्वाथ का प्रयोग किया जाता है।

 

जल चिकित्साः-

 

इसके अन्तर्गत उष्ण टावल से स्वेदन, कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक, वाष्प स्नान, कुन्जल, नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी, शोध, उदर रोग, प्रतिश्‍याय, अम्लपित आदि रोगो में किया जाता है।

 

सूर्य रश्मि चिकित्साः-

 

सूर्य के प्रकाश के सात रंगो के द्वारा चिकित्सा की जाती है।यह चिककित्‍सा शरीर मे उष्‍णता बढाता है स्‍नायुओं को उत्‍तेजित करना वात रोग,कफज,ज्‍वर,श्‍वास,कास,आमवात पक्षाधात, ह्रदयरोग, उदरमूल, मेढोरोग वात जन्‍यरोग,शोध चर्मविकार, पित्‍तजन्‍य रोगों में प्रभावी हैं।

 

उपवास-

 

सभी पेट के रोग, श्वास, आमवात, सन्धिवात, त्वक विकार, मेदो वृद्धि आदि में विशेष उपयोग होता है।